चिंगारी की रोशनी Cover Image
Loại
Khác

तुम से ज़्यादा क्या माँगे
हम ले ना पायेंगे
रब दे ना पायेगा।
चाहत भी करो उतनी , जितनी
पा जाओ तसल्ली से
उतना ही बढ़ाओ कदम, जिससे
जी पाओ तजल्ली से।
अपनी-अपनी चाहत है
पाने की हश्रत है
जितना पाओगे उतना
मन ज़्यादा चाहेगा
तुम से ज़्यादा क्या माँगे
हम ले ना पायेंगे
रब दे ना पायेगा।

- अमित शाण्डिल्य

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-------------माधव मुझे बाँसुरी बजाना सिखा दे-----------

माधव मुझे बाँसुरी बजाना सिखा दे,
बाँसुरी तेरी बजे सुरीली ,
कैसे बजाऊं है ये पहेली ,
अपनी ये कला मुझे सिखा दे,
माधव मुझे बाँसुरी बजाना सिखा दे।

मैं भी यमुना तीरे जाकर ,
मोहन तेरी धुन मे गा कर ,
अपनी राधा संग रास रचाऊं,
मेरी आश जगा दे,
माधव मुझे बाँसुरी बजाना सिखा दे ।

इसी बंसी की धुन पे तुमने
जग को है रिझाया,
मुझको भी हे मुरलीमनोहर
"अमित" धुन मे रमा दे,
इसी बहाने श्याम सुन्दर
तुं अपने दरश दिखा दे,
माधव मुझे बाँसुरी बजाना सिखा दे।

“अमित शाण्डिल्य”

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जर्फ़े – आफ़ताब* उठाने से डरता हूँ ,
होंठों से शराब लगाने से डरता हूँ ।1।

तुमने जो दी थी कसम , तोड़ दी मैंने ,
मख़मूर* हूँ मैं अबतलक , बताने से डरता हूँ ।2।

जाम पे जाम तेरे नाम का पीता हूँ अब ,
तुझको मगर खुद मे समाने से डरता हूँ ।3।

गुल – गश्ती* मुझे बचपन से प्यारी रही है ,
पर इक गुल को अपना बनाने से डरता हूँ ।4।

अजीब सा डर है मन मे , पता ही नहीं चलता ,
मैं तुझसे डरता हूँ , या जमाने से डरता हूँ ।5।

" अमित शाण्डिल्य "

जर्फ़े – आफ़ताब : शराब का प्याला ।
मख़मूर : नशे मे चूर ।
गुल – गश्त : बाग़ में घूमना ।

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---------------“सुख-दुख”-------------------

तुम जब दुख से घिर जाओ, समझो सुख आने वाला है
दुख की परिधि बड़ी है परंतु , हर आयाम का अंत होगा,
कुछ भी अमिट नहीं जग मे, सब जाने वाला है,
तुम जब दुख से घिर जाओ, समझो सुख आने वाला है l

दुख कि कल्प बहुत भयानक , सुख स्वप्न सदृश लगे,
दुख मे कोई नहीं साथी , सुख मे सब साथ रहे ,
सुख-दुख के हर पहलू मे, कर्म की बड़ी ही महत्ता है,

इस सत्य को जिसने समझ लिया ,
वह दुख मे धीर ना खोएगा,
वह मानव निर्बल कहलाए, जो फुटफुट कर रोयेगा,
मन मे आत्मविश्वास और धीरज जगे तो समझो,
दुख जाने वाला है
तुम जब दुख से घिर जाओ, समझो सुख आने वाला है।

“अमित शाण्डिल्य”

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-------------------किस्मत------------------

हाथों की लकीरों मे मत ढूँढो,
किस्मत के झूठे बातों को ,

भाग्य भरोसे अगर बैठोगे,
मंजिल तक कैसे जाओगे,
मन मे है जो अभिलाषा ,
कैसे उसको तुम पाओगे ,

सत्य से कब तक भागोगे,
क्या क्या देगी किस्मत तुझको,
मत छुपा अपने जजबातों को,
हाथों की लकीरों मे मत ढूँढो,
किस्मत के झूठे बातों को ।

जितना तुम यत्न करोगे,
उतना ही मिलेगा इस जग मे,
मंजिल मे कई रुकावट है,
काँटे मिलेंगे पग पग पे,

नव सोच से रच तुं नई राह,
भूल पुरानी बातों को,
हाथों की लकीरों मे मत ढूँढो,
किस्मत के झूठे बातों को ।

“अमित शाण्डिल्य”

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