सोमनाथ मंदिर में पूजा विधि: आस्था, परंपरा और नियम
सोमनाथ मंदिर, जिसे भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला माना जाता है, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में समुद्र तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे भारतीय इतिहास और हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था और इसे कई बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट भी किया गया। हर बार इसे नए जोश और आस्था के साथ पुनर्निर्मित किया गया, जो भक्तों की भक्ति और भगवान शिव के प्रति उनके अटूट विश्वास को दर्शाता है।
सोमनाथ मंदिर में पूजा विधि को विशेष रूप से पवित्र और परंपराओं का प्रतीक माना जाता है। यहाँ हम सोमनाथ मंदिर में की जाने वाली पूजा विधि और इससे जुड़े नियमों का वर्णन करेंगे, ताकि भक्तजन इसका अनुसरण कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकें।
1. मंदिर में प्रवेश से पहले स्नान और पवित्रता का पालन
सोमनाथ मंदिर में पूजा करने के लिए पवित्रता का पालन अत्यंत आवश्यक है। भक्तों को मंदिर में प्रवेश से पहले समुद्र में स्नान करना उचित माना जाता है, जो एक पवित्र और शुद्धिकरण की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। समुद्र में स्नान करने के बाद भक्त पवित्र वस्त्र पहनते हैं और मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं। यह पवित्रता भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्त के मन की शुद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
2. मंदिर परिसर में ध्यान और भक्ति
मंदिर के मुख्य परिसर में प्रवेश करते ही भक्त एक पवित्र और शांतिपूर्ण वातावरण का अनुभव करते हैं। यह स्थान ध्यान और प्रार्थना के लिए आदर्श है। यहां भक्त भगवान शिव के सामने मौन बैठकर ध्यान करते हैं और मन को शांत करते हैं। मंदिर में बज रहे मंत्र और शंख की ध्वनि ध्यान के अनुभव को और अधिक गहरा बनाते हैं। यह समय भक्तों के लिए आत्म-शांति और भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा को अर्पित करने का होता है।
3. गर्भगृह में प्रवेश और ज्योतिर्लिंग के दर्शन
सोमनाथ मंदिर का गर्भगृह भगवान शिव का निवास माना जाता है, जहां उनके ज्योतिर्लिंग का दर्शन होता है। गर्भगृह में केवल मंदिर के पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन भक्त बाहर से ही भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं। श्रद्धालु कतार में खड़े होकर शांति से अपनी बारी का इंतजार करते हैं। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से भक्तों का मन शांत होता है, और उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
4. अभिषेक और जल अर्पण की प्रक्रिया
सोमनाथ मंदिर में पूजा का मुख्य चरण अभिषेक और जल अर्पण होता है। अभिषेक की प्रक्रिया में भक्त भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर पवित्र जल, गंगाजल, दूध, दही, शहद और चंदन अर्पित करते हैं। यह अभिषेक रुद्राभिषेक कहलाता है और भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है। अभिषेक के दौरान भक्त "ओम नमः शिवाय" मंत्र का उच्चारण करते हैं, जिससे वातावरण अत्यधिक पवित्र हो जाता है। यह माना जाता है कि अभिषेक करने से भगवान शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और उन्हें शुभाशीर्वाद देते हैं।
5. बिल्वपत्र, पुष्प और अन्य पूजन सामग्री का अर्पण
अभिषेक के बाद, भक्त भगवान शिव को बिल्वपत्र, धतूरा, चंदन, गुलाल, पुष्प, और फल अर्पित करते हैं। भगवान शिव को बिल्वपत्र विशेष प्रिय है, और इसे चढ़ाने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा सामग्री के रूप में कपूर, धूप, दीप और अन्य आवश्यक वस्त्र भी अर्पित किए जाते हैं। यह सभी सामग्री भगवान शिव की पूजा में अनिवार्य मानी जाती हैं और इसे भक्तगण पूरी श्रद्धा के साथ अर्पित करते हैं।
6. महाआरती और घंटों की ध्वनि
सोमनाथ मंदिर में महाआरती का आयोजन दिन में तीन बार किया जाता है: सुबह, दोपहर, और शाम को। महाआरती के समय घंटों, शंखों और ढोल-नगाड़ों की ध्वनि मंदिर के वातावरण को अत्यधिक पवित्र और आनंदमयी बना देती है। भक्त आरती के समय अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान शिव की आरती में सम्मिलित होते हैं। आरती का समय भक्तों के लिए भगवान शिव से जुड़ने का समय होता है, जहां वे अपनी मनोकामनाएं भगवान के समक्ष अर्पित करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
7. प्रसाद ग्रहण और उसका महत्व
महाआरती के बाद, भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है, जो भगवान शिव का आशीर्वाद माना जाता है। प्रसाद में फल, मिठाई और विशेष प्रसाद के रूप में अन्य वस्त्र शामिल होते हैं। इसे ग्रहण करना भक्तों के लिए एक पवित्र अनुभव होता है, और वे इसे भगवान शिव की कृपा का प्रतीक मानते हैं। प्रसाद का वितरण मंदिर के पुजारी करते हैं, और इसे भक्त अपने परिवार के साथ साझा करते हैं।
8. ध्यान और प्रार्थना का समय
मंदिर में पूजा के बाद भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ मंदिर के परिसर में कुछ समय ध्यान और प्रार्थना में बिताते हैं। मौन ध्यान और प्रार्थना से भक्तों का मन शांत होता है, और उनमें सकारात्मकता का संचार होता है। मंदिर का वातावरण इस प्रकार की साधना के लिए उपयुक्त होता है, जहां भक्त अपनी आत्मा को भगवान शिव के प्रति समर्पित करते हैं।
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