तुम से ज़्यादा क्या माँगे
हम ले ना पायेंगे
रब दे ना पायेगा।
चाहत भी करो उतनी , जितनी
पा जाओ तसल्ली से
उतना ही बढ़ाओ कदम, जिससे
जी पाओ तजल्ली से।
अपनी-अपनी चाहत है
पाने की हश्रत है
जितना पाओगे उतना
मन ज़्यादा चाहेगा
तुम से ज़्यादा क्या माँगे
हम ले ना पायेंगे
रब दे ना पायेगा।

- अमित शाण्डिल्य

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