जर्फ़े – आफ़ताब* उठाने से डरता हूँ ,
होंठों से शराब लगाने से डरता हूँ ।1।
तुमने जो दी थी कसम , तोड़ दी मैंने ,
मख़मूर* हूँ मैं अबतलक , बताने से डरता हूँ ।2।
जाम पे जाम तेरे नाम का पीता हूँ अब ,
तुझको मगर खुद मे समाने से डरता हूँ ।3।
गुल – गश्ती* मुझे बचपन से प्यारी रही है ,
पर इक गुल को अपना बनाने से डरता हूँ ।4।
अजीब सा डर है मन मे , पता ही नहीं चलता ,
मैं तुझसे डरता हूँ , या जमाने से डरता हूँ ।5।
" अमित शाण्डिल्य "
जर्फ़े – आफ़ताब : शराब का प्याला ।
मख़मूर : नशे मे चूर ।
गुल – गश्त : बाग़ में घूमना ।
Sanjeev Kumar
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